वेब
का इतिहास (History Of Web)
वर्ल्ड
वाइड वेब के अविष्कार से पहले इन्टरनेट का प्रयोग बहुत ही कठिन था। इस पर उपलब्ध
सूचनाओं को खोजना तथा इसको प्रयोग में लाना और कठिन था। इन्टरनेट पर उपलब्ध
फाइलों को ढूँढ़ना तथा उसे डाउनलोड करने के लिए यूनिक्स स्किल्स (skills) तथा विशिष्ट टूल्स की आवश्यकता
पड़ती थी।
टीम
बर्नर्स ली (Tim Berners Lee) को
वर्ल्ड वाइड वेब का जनक (Father Of World Wide Web) कहा जाता हैं बर्नर्स यूरोपियन आरगेनाइजेशन फॉर
न्यूक्लियर रिसर्च (European Organization For Nuclear Research ), स्वीटजरलैन्ड में कार्य कर रहे थे। वह इन्टरनेट
का प्रयोग करने की जटिल विधि से बिल्कुल निराश हो चुके थे तथा हमेशा उन्हें
आसानी से प्रयोग किये जाने वाले इन्टरफेस प्रोग्राम की आवश्यकता का एहसास होता
था ताकि इन्टरनेट पर उपलब्ध सूचना को आसानी से एकत्र किया जा सके।
सर्न
(CERN)
में उनके कार्य के लिए हमेशा इन्टरनेट
की आवश्यकता पड़ती थी। इन्टरनेट का उपयोग वह शोध, तथा
अपने शोधकर्ता मित्रों के साथ सम्पर्क करने में करते थे। उन्हें इन्टरनेट के
उपयोग किये जाने में आने वाली कठिनाइयों ने इस बात के लिए उनके अंदर ऐसे प्रणाली
का विकास करने पर प्रेरित किया जो उनके काम को आसान बना सके। 1989 में, उन्होंने
वर्ल्ड वाइड वेब के विकास के लिए सर्न (CERN) के इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्प्यूटिंग फॉर
फिजिक्स (Electronics and Computing For Physics) विभाग को एक प्रस्ताव दिया लेकिन इस प्रस्ताव
को बहुत अधिक स्वीकृति नहीं मिली। फिर जब दोबारा उन्होंने अपने मित्र रॉबर्ट
कैलियो (Robert Cailliao) के
साथ,
प्रस्ताव की अस्वीकृति के कारणों पर
विचार करने के बाद जमा किया, तब
जाकर वह प्रस्ताव मंजूर किया गया और वर्ल्ड वाइड वेब के परियोजना का अधिकारिक
तौर पर शुरूआत हुई। वेब के लिए उपयुक्त धन भी प्रदान किया गया। 1991 में, इसके
बारे में इन्टरनेट प्रयोगकर्ताओं को सूचना मिली फिर भी शायद ही लोगों ने सोचा
होगा कि अब इन्टरनेट इतना सरल हो जायेगा।
फरवरी
1993 में, नेशनल
सेन्टर फॉर सुपरकम्प्यूटिंग एप्लिकेशन्स (National Centre for Super Computing
Application-NCSA) ने
मोजैक (Mosaic)
का पहला संस्करण विण्डो के लिए बाजार
में उपलब्ध कराया। यह वर्ल्ड वाइड वेब के लिए वरदान था जिसने वेब को सफलता के
शिखर पर पहुँचा दिया। इसमें एक यूजर फ्रेन्डली ग्राफिकल यूजर इन्टरफेस का प्रयोग
किया गया था जिसने उस समय के इन्टरनेट प्रयोक्ता को इन्टरनेट के प्रयोग की
जटिलता से मुक्त कराया। इसके अतिरिक्त, मोजैक
को माउस के द्वारा भी संचालित किया जा सकता था। अब प्रयोक्ता बगैर की – बोर्ड के भी इन्टरनेट का आनन्द उठा
सकते थे जोकि इन्टरनेट के क्षेत्र की एक अद्भुत प्रगति थी। वेब अब केवल हायपरटैक्स्ट
नहीं था।
वर्ल्ड
वाइड वेब के अविष्कार के पश्चात् प्रयोक्ता को इन्टरनेट के विभिन्न संसाधनों
को एक्सेस करने के लिए विभिन्न टूलों (tools) की आवश्यकता नहीं थी तथा वर्ल्ड वाइड वेब को
हायपरमीडिया (hypermedia) भी
कहा जाने लगा क्योंकि ये प्रोटोकॉल परस्पर संयोजित टैक्स्ट, वीडियो, ध्वनि
तथा ग्राफिक्स एक साथ सूचना की एक इकाई के रूप में प्रदान करते थे। वेब अब
वैश्विक प्रणाली बन गया जिसे दुनियाभर में कही से भी एक्सेस किया जा सकता हैं।
मोजैक
के आने के बाद तो वेब ने सफलता के आकाश को ही माना छू लिया हो। 1994 में, मोजैक
के पहले संस्करण के रिलीज (release) के
बाद वेब ने नेशनल साइंस फाउन्डेशन (National Science Foundation) बैकबोन पर गेफर से ज्यादा ट्रैफिक (traffic) बना लिया था।
Ø
कोई
वेबसाइट तैयार करने और उसके पूरा हो जाने पर किसी होस्ट सर्वर पर अपलोड करने की
प्रक्रिया को वेब पब्लिशिंग कहा जाता है।
वेब
पब्लिशिंग के चरण-
कोई
वेबसाइट तैयार करके उसे इंटरनेट पर सबके उपयोग के लिये डालने की प्रक्रिया एक
लम्बी प्रक्रिया है, जो किसी पुस्तक के प्रकाशन की तरह कई
चरणो मे पूरी की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को हम निम्नलिखित पाॅच चरणो मे बाॅट
सकते है-
1. डोमेन नाम का रजिस्ट्रेशन करना।
2. वेब होस्टिंग।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास।
4. प्रचार या प्रमोशन।
5. रखरखाव।
किसी
सफल वेबसाइट के लिये ये सभी चरण महत्वपूर्ण है।
1. डोमेन नेम रजिस्ट्रेशन- किसी वेबसाइट
का डोमेन नाम उसका ऐसा नाम या पता है जिससे इंटरनेट के उपयोगकर्ता द्वारा उसको
पहचाना और देखा जाता है। वेब प्रकाशन का पहला चरण उस वेबसाइट के लिये कोई डोमेन
नाम तय करना और किसी वेब सर्वर पर उस डोमेन नाम को पंजीकृत करना होता है।
डोमेन
नेम चुनना- अपनी वेबसाइट के लिये डोमेन नाम का चयन आपको स्वयं करना होता है। यह
नाम ऐसा होना चाहिये जो पहले से किसी अन्य वेबसाइट का ना हो और आपकी साइट के
उददेश्य तथा सामाग्री का संकेत देता हो। सामान्यतः कोई कंपनी अपने नाम जैसा ही
डोमेन नाम पंजीकृत कराता है यदि वह उपलब्ध हो। यदि वह उपलब्ध नही है तो उससे मिलता
जुलता कोई नाम लिया जा सकता है, जो उपलब्ध हो।
वेबसाइट
के लिये डोमेन नाम चुनते समय निम्नलिखित बातो को ध्यान मे रखना चाहिए-
1. डोमेन नेम ऐसा होना चाहिए जो आपका या
आपकी कंपनी का या आपके ब्रांड का नाम हो। ऐसा करने से आपके ग्राहको को आपकी
वेबसाइट तक पहुचना सरल होगा, क्योकि किसी भी व्यक्ति के लिये भिन्न
नामो को याद रखना संभव नही होता है।
2. डोमेन नाम जितना छोटा हो, उतना
ही अच्छा रहता है। छोटे नामो को याद रखना या टाइप करना भी सरल होता है। डोमेन नाम 67
अक्षरो जितने लंबे भी हो सकते है।
3. डोमेन नेम मे हाइफन (-) या डैश (-) का
उपयोग सामान्यतया: नही होना चाहिए।
4. डोमेन नेम मे कैपीटल अक्षरो के प्रयोग
से बचना चाहिए। सामान्यतः सभी डोमेन नाम छोटे अक्षरो मे रखे जाते है।
5. डोमेन नेम मे बहुवचन का प्रयोग नही
होना चाहिए, क्योकि कई बार उपयोगकर्ता बहुवचन
अर्थात अक्षर टाईप करना भूल जाते है। इससे गलत वेबसाइट खुल जाती है।
6. डोमेन नेम मे आपकी साइट के उददेश्य का
भी पता चलता है। अतः यदि आपकी साइट परोपकारी या स्वयंसेवी संस्था है, तो
आपको कभी भी .COM नाम नही लेना चाहिए। इसके बजाह ण्वतह
वाला डोमेन नाम लेना चाहिए।
यदि
आप इन बातो का ध्यान मे रखते हुए अपना डोमेन नाम तय करेगे तो आपकी वेबसाइट के सफल
होने की अधिक संभावना होगी।
डोमेन
नाम पंजीकृत कराना-
डोमेन
नेम रजिस्ट्रि जिसे नेटवर्क इनफाॅमेशन सेटंर जाता है, डोमेन
नाम सिस्टम का एक भाग है जो डोमेन नामो को IP Address मे
बदलता है। यह एक संगठन है जो डोमेन नाम के पंजीकरण का प्रबंध करता है।डोमेन नाम
आवंटित करने की नीति बनाता है और उच्च स्तरीय डोमेन को आॅपरेट करता है। यह डोमेन
नाम के रजिस्ट्रारो से अलग होता है। डोमेन नामो को रजिस्टर करने का कार्य Internet Assigned Numbers Authorty या (IANA) नामक समिति
द्वारा किया जाता है। यह समिति उच्च स्तरीय डोमेन नामो को स्वयं पंजीकृत करती है
और शेष कार्य को विभिन्न संगठनो पर छोड देती है।
विभिन्न
देशो के डोमेन नाम रजिस्टर करने वाले अनेक संगठन और वेबसाइट है। आप उनमे से किसी
भी निर्धारित शुल्क देकर अपना डोमेन नाम पंजीकृत करा सकते है। उदाहरण के लिये भारत
मे Yaho.com, GoDaddy.com,
Candidinfo.com, Sify.com, Dotster.com, Register.com आदि अनेक वेबसाइटे यह कार्य करती है। उनका
शुल्क अलग अलग होता है। डोमेन नाम पंजीकरण सामान्यतः एक साल के लिये किया जाता है।
यह अवधि समाप्त होने से पहले ही आप फिर शुल्क देकर पंजीकरण बढा सकते है। वैसे आप
एक साथ कई साल का शुल्क जमा करके भी अपना डोमेन नाम कई वर्ष के लिये पंजीकृत करा
सकते है। कई वेबसाइट आपको निशुल्क डोमेन नाम देने का भी प्रस्ताव रखती है, परन्तु
ऐसा करने से पहले आपको अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।
2. वेब होस्टिंग-
यह वेब पब्लिशिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग कहा जाता है। यह अपने आॅफिस या
दुकान के लिये केाई जगह किराये पर लेने के समान है। जब आप अपनी वेबसाइट के डोमेन
नाम का पंजीकरण करा लेते है और उसको डिजाइन कर लेते है, तो
उसको किसी वेब सर्वर पर स्टोर करना ही वेब होस्टिंग कहा जाता है। यह कार्य किसी
अच्छे वेब सर्वर पर ही किया जाता है,
क्योंकि वे आपकी वेबसाइट को 24
घंटे सक्रिय रखते है और उसका उपयोग इंटरनेट पर सभी को उपलब्ध कराते है।
3. वेबसाइट डिजाइन और विकास- कोई वेबसाइट किसी विशेष विषय पर
सूचनाओ का एक संग्रह होती है। किसी वेबसाइट को डिजाइन करने से हमारा तात्पर्य उसके
वेब पेजो का निर्माण और उन्हे किसी विशेष रूप मे व्यवस्थित करना होता है। विभिन्न
वेब पेजो से मिलकर ही कोई वेबसाइट बनती है। किसी वेब पेजे मे उन मे उन सूचनाओ कोई
भाग होता है जिनके लिये वेबसाइट को बनाया गया है। इस प्रकार आप किसी वेबसाइट को एक
पुस्तक के रूप मे देख सकते है, जिसके प्रत्येक पृष्ठ को एक वेब पेेज
माना जा सकता है।
4. प्रचार या प्रमोशन- किसी वेबसाइट का प्रचार निम्नलिखित
विधियो से किया जाता है-
1. समाचार पत्रो या पत्रिकाओ मे विज्ञापन
द्वारा।
2. रेडियो, टीवी. आदि पर
विज्ञापन।
3. अन्य प्रसिध्द वेबसाइटो पर विज्ञापन
देना।
4. अपनी साइट को सर्च इंजनो जैसे गूगल और
याहू के साथ जोडना।
5. रखरखाव- किसी वेबसाइट की सफलता के लिये
यह आवश्यक है कि उसमे नवीनता और रोचकता रहे ताकि उसके आगंतुक उसमे आते रहे। इसके
लिये आपको अपनी वेबसाइट निरन्तर सुधारने और पुरानी जानकारी हटाकर नई जानकारियाॅ
डालते रहने की आवश्यकता होती है। इसलिये अपनी वेबसाइट पर स्वयं भ्रमण करते रहना
चाहिए तथा परिवर्तनो की आवश्यकता का पता लगाते रहना चाहिए। विशेष तौर पर आपके
उत्पादो, सेवाओ और उनके मूल्यो की जानकारी नवीनतम होनी
चाहिए।
Internet
Terminology (इन्टरनेट
शब्दावली)
गोफर
(Gopher)
इसका
विकास अमेरिका के मिनिसोटा यूनिवर्सिटी में हुआ था यह एक यूजर फ्रेंडली इंटरफेस
प्रदान करता है गोफर के माध्यम से कोई भी यूजर इंटरनेट पर सूचनाओं को प्राप्त कर
सकता है गोफर यूजर के द्वारा वांछित
सूचनाओं को खोजकर यूजर के सामने ला देता है इसका प्रयोग करना बहुत आसान है इसके
अतिरिक्त गोफर कई इंटरनेट सर्विस को आपस में जोड़ने में भी सहायक होता है|
WWW की
विशेषताये :-
HyperText
Information System
Cross-Platform
Distributed
Open
Standards and Open Source
Web
Browser: provides a single interface to many services
Dynamic,
Interactive, Evolving
Graphical
Interface
Hypertext
Information System:- वेब पेज के document में विभिन्न घटक होते है जैसे टेक्स्ट, graphics, object, sound यह सभी घटक आपस में एक दूसरे से जुड़े
होते है | इन घटकों को आपस में जोड़ने के लिए hypertext का उपयोग किया जाता है |
Distributed:- www में
वेबसाइट एक दूसरे से जुड़े होते है |सभी वेबसाइट में अलग अलग इन्फोर्मेशन
होती है बहुत सी वेबसाइट ऐसी होती है जो दूसरे वेबसाइट से जुडी होती है| यूजर
एक वेबसाइट खोलकर उससे दूसरे वेबसाइट से जुड सकता है इस कार्यप्रणाली को Distributed System कहा जाता है |
cross
platform :– cross platform का अर्थ होता है की वेब पेज या वेब
साईट किसी भी कंप्यूटर hardware या operating System पर
कार्य कर सकता है|
ग्राफिकल
इंटरफ़ेस:- वर्तमान में
सभी वेबसाइट में टेक्स्ट के अलावा विडियो, ध्वनि आदि का
समावेश रहता है | Hyperlink सुविधा से इन्फोर्मेशन को आसानी से देख
सकते है या वेब पेज से जोड़ सकते है |
dynamic website में
मेनू, कमांड, बटन आदि का यूज
किया जाता है, इससे कार्य करने में आसानी जाती है |
इलेक्ट्रॉनिक
मेल (Electronic mail)
ईमेल
कंप्यूटर के द्वारा भेजी जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक डाक सेवा का एक संक्षिप्त रूप है
इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के द्वारा बड़ी-बड़ी सूचनाओं को प्रकाश की गति से भेजना इमेल
ने संभव कर दिया है इसके माध्यम से आप कोई भी सूचना या संदेश एक स्थान से दूसरे
स्थान पर एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को भेज सकते हैं और प्राप्त कर सकते
हैं कंप्यूटर को मॉडेम के द्वारा टेलीफोन से जोड़कर किसी भी सूचना व कंप्यूटर के
प्रोग्राम को दुनिया के किसी भी हिस्से में भेज सकते हैं|
टेलनेट
(Telnet)
यह
प्रोटोकॉल यूजर को रिमोट कंप्यूटर से जोड़ने में सहायक होता है जिस प्रकार फोन पर
नंबर डायल करके बात की जा सकती हैं उसी प्रकार इससे आपस में डेटा ट्रांसफर किया जा
सकता है जो आपको किसी अन्य कंप्यूटर पर पहुंचा कर उस पर उपलब्ध विभिन्न सेवाओं के
इस्तेमाल का अवसर देती है पर कार्य करते समय यूज़रनेम पासवर्ड की आवश्यकता होती है
जब यूजर नेम व पासवर्ड सही होता है तो यूजर रिमोट कंप्यूटर से जुड़ जाता है
यूजर
नेट (User net)
यूज़र
नेट एक ऐसा नेटवर्क है जो किसी यूज़र को विभिन्न समूहों से सलाह करने में सहायता
प्रदान करता है यूज़र नेट विभिन्न विषयों पर सूचनाएं एकत्र करने में भी सहायक होता
है यह विभिन्न न्यूज़ ग्रुप का एक ऐसा संग्रह है जो सूचनाओं के एक विशेष क्षेत्र
को कवर करता है उदाहरण के लिए यदि कोई यूज़र राजनीति के बारे में जानता है तो
यूज़र नेट का ग्रुप जो राजनीति को कवर करता है उसी राजनीति के बारे में जानकारी
प्रदान करेगा आज के समय में समाचारों से संबंधित लगभग 2000
संगठन उपलब्ध है|
वर्ल्ड
वाइड वेब (World Wide Web)
वर्ल्ड
वाइड वेब एक प्रकार का डेटाबेस है जो पूरे विश्व में फैला हुआ है यूजर इसी के
माध्यम से सूचनाओं को प्राप्त करता है इसमें यूजर के द्वारा सूचनाओं से संबंधित
शीर्षक दिया जाता है यूजर उस शीर्षक से संबंधित सभी सूचनाओं का उपयोग कर सकता है
पहले वर्ल्ड वाइड वेब में सिर्फ लिखित सूचनाएं उपलब्ध थी किंतु आज लिखित सूचनाओं
के साथ-साथ चित्र, ध्वनि, गेम, कार्टून, ऑडियो, वीडियो
आदि कई सारी सुविधाएं उपलब्ध है इस पर सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए ब्राउजर
सॉफ्टवेयर जैसे इंटरनेट एक्सप्लोरर,
गूगल क्रोम,मोज़िला
फ़ायरफ़ॉक्स आदि ब्राउजर की आवश्यकता होती है|
आर्ची
(Archie)
आर्ची
एक ऐसा सिस्टम है जो एफ़टीपी सर्वर में स्टोर फाइलों को तलाश करता है इसके द्वारा
सूचनाओं के भंडार के बीच अपनी जरूरत की सूचना तलाशी जा सकती है आर्ची आमतौर पर
सर्वरों का एक ऐसा संग्रह है जिसके प्रत्येक सर्वर में जानकारी रहती है कि कौन सी
फाइल किस सर्वर में है तथा यह किस विषय से संबंधित है|
वेरोनिका
(Veronica)
यह
एक ऐसा प्रोग्राम है जो गोफर के माध्यम से कार्य करता है इसके माध्यम से
शीघ्रतापूर्वक आवश्यक सूचनाएं प्राप्त की जा सकती हैं यूजर गोफर सर्वर और वेरोनिका
सर्वर को एक्सेस कर के किसी डेटाबेस तक आसानी से पंहुचा सकता है यह आवश्यक नहीं है
कि गोफर सर्वर वेरोनिका सर्वर के साथ ही सर्विस प्रदान करें वेरोनिका सर्वर का
आर्ची सर्वर से ज्यादा अच्छा प्रयोग है इसमें यूजर को File नेम के बारे में जानना आवश्यक नहीं है|
वाइड
एरिया इंफॉर्मेशन सिस्टम (WAIS)
इसको
आमतौर पर वॉइस से संबोधित करते हैं यह एक प्रकार का सर्च सिस्टम है जो कि यूज़र
द्वारा मांगे गए फाइल को सर्वर से जुड़कर यूजर को प्रदान करता है वाइड एरिया
इंफॉर्मेशन सिस्टम उस एड्रेस को बताता है जहां फाइल उपलब्ध है यदि यूज़र द्वारा
मांगी गई फाइल किसी एक वाइड एरिया इंफॉर्मेशन सिस्टम सर्वर पर नहीं मिलती है तब यह
वाइड एरिया इंफॉर्मेशन सिस्टम सर्वर किसी अन्य वाइड एरिया इंफॉर्मेशन सर्वर की
सहायता लेता है|
इंटरनेट
रिले चैट (Internet Relay Chat)
इंटरनेट
रिले चैट को सामान्य भाषा में चैट के रूप से जाना जाता है इसका प्रयोग प्रयोक्ता
ऑनलाइन एक दूसरे से संवाद स्थापित करने में करते हैं एक ओर का यूजर दूसरी ओर के
यूजर से कम्युनिकेशन टेक्स्ट टू वॉयस के रूप में कर सकता है|
फाइल
ट्रांसफर प्रोटोकॉल (File Transfer Protocol)
यह
प्रोटोकॉल एक कंप्यूटर नेटवर्क से दूसरे कंप्यूटर नेटवर्क में फाइलों को भेजने का
कार्य करता है यह प्रोटोकॉल होस्ट कंप्यूटर या सर्वर से किसी अन्य कंप्यूटर पर
फाइल कॉपी करने में भी सहायक होता है|
www की कार्यप्रणाली :-
HTML (Hypertext markup language) एक language है | HTML hypertext link प्रदान करता है, जो
किसी यूजर को वेबसाइट से जुड़े हुए वेब पेज को एक्सेस करने में मदद करता है |
www, client server model पर Based होता है, जिसमे
क्लाइंट साईट पर remote machine पर
क्लाइंट साफ्टवेयर (वेब ब्राउसर) कार्य करता है| सर्वर
साईट पर सर्वर सॉफ्टवेयर कार्य करता है |
client के
द्वारा वेब ब्राउज़र के एड्रेस बार में url एड्रेस
टाइप किया जाता है |
URL किसी भी फाइल का
एड्रेस होता है, जिसके तीन भाग
होते है :-
Protocol
Domain name
Path
वेब
browser
में दिए हुए एड्रेस के आधार पर वेब browser दिए गए url के
सर्वर से संपर्क करता है तथा उसे url के
अनुसार साईट प्रदान करने का आग्रह करता है |
सर्वर
के द्वारा url को IP address में परिवर्तित कर दिया जाता है, इससे client कंप्यूटर एक निश्चित सर्वर से जुड जाता है |
जब
एक बार साईट प्रदर्शित होती है, तो
उसमे सामान्य टेक्स्ट के अतिरिक्त के हायपर टेक्स्ट भी होते है जिस को इंगित करने
पर उससे सम्बंधित URL प्रदर्शित होता
है,जब यूजर उस लिंक को क्लिक करता है तब
फिर वेब browser उस url पर उपस्थित पेज को प्रदर्शित करने का
आग्रह सर्वर से करता है तथा सर्वर उस पेज को प्रदर्शित करता है जो browser उसे यूजर के लिए प्रदर्शित करता है |
इस
प्रकार वेब browser कार्य
करता है |
Open
Systems Interconnection model
OSI
Model (Open Systems Interconnection model) को ISO (International Organization for
Standardization) ने 1984 में Develop किया था। यह एक reference model है, अर्थात
real
life में इसका कोई उपयोग नहीं होता है। Real life में हम OSI Model के आधार पर बने हुए TCP/IP Model का प्रयोग करते है।
OSI
Model यह describe करता है कि किसी नेटवर्क में डेटा या सूचना
कैसे send
तथा receive होती है। OSI मॉडल
के सभी layers
का अपना अलग-अलग task होता है जिससे कि डेटा एक सिस्टम से
दूसरे सिस्टम तक आसानी से पहुँच सके। OSI मॉडल
यह भी describe
करता है कि नेटवर्क हार्डवेयर तथा
सॉफ्टवेयर एक साथ लेयर के रूप में कैसे कार्य करते है। OSI मॉडल किसी नेटवर्क में दो यूज़र्स के
मध्य कम्युनिकेशन के लिए एक Reference Model है। इस मॉडल की प्रत्येक लेयर दूसरे लेयर पर depend नही रहती, लेकिन एक लेयर से दूसरे लेयर में डेटा
का transmission
होता है।
(Open Systems Interconnection model) OSI Model में 7
लेयर होती है
Layer
7 Application
Layer
6 Presentation
Layer
5 Session
Layer
4 Transport
Layer
3 Network
Layer
2 Data
Link
Layer
1 Physical
Physical Layer – OSI मॉडल
में physical
Layer सबसे फर्स्ट लेयर है। इस लेयर को Bit unit भी कहा जाता है। यह लेयर फिजिकल तथा
इलेक्ट्रिकल कनेक्शन के लिए Responsible रहता
है जैसे: – वोल्टेज, डेटा रेट्स आदि। इस लेयर में Digital signal,
Electrical signal में
बदल जाते है। इस लेयर में नेटवर्क के लेआउट अर्थात नेटवर्क की टोपोलॉजी का कार्य
भी होता है।फिजिकल लेयर यह भी describe करती
है कि कम्युनिकेशन वायरलेस होगा या वायर्ड ।
Data link Layer – OSI Model में Data link layer सेकंड लेयर है। इस लेयर को Frame unit भी कहा जाता है। इस लेयर में Network Layer द्वारा भेजे गए डेटा के packets को decode तथा encode किया जाता है तथा यह लेयर यह भी confirm करता है कि डेटा के ये पैकेट्स Error free हो। इस layer में डेटा ट्रांसमिशन के लिए दो प्रोटोकॉल
प्रयोग होते है.
High-level data link control (HDLC)
PPP (Point-to-Point Protocol)
Network Layer – नेटवर्क लेयर OSI Model की थर्ड लेयर है इस लेयर को Packet unit भी कहा जाता है। इस लेयर में switching तथा routing technique का प्रयोग किया जाता है। इसका कार्य I.P. address
provide कराना है। नेटवर्क लेयर में जो डेटा
होता है वह पैकेट्स के रूप में होता है और इन पैकेट्स को source से destination तक पहुँचाने का काम नेटवर्क लेयर का होता है।
Transport Layer – ट्रांसपोर्ट
लेयर OSI
Model की फोर्थ लेयर है। इसे Segment unit भी कहा जाता है। ये layer data के reliable transfer के लिए responsible होती है। अर्थात Data order में और error free पहुंचे ये इसी layer की जिम्मेदारी होती है। Transport layer 2 तरह से communicate करती है connection-less और connection oriented।
Session Layer – Session Layer OSI Model की फिफ्थ लेयर है सेशन लेयर का मुख्य कार्य यह
देखना है कि किस प्रकार कनेक्शन को establish, maintain तथा terminate किया जाता है।
Presentation Layer – Presentation Layer OSI Model की सिक्स्थ लेयर है। यह लेयर ऑपरेटिंग
सिस्टम से सम्बंधित है। इस लेयर का प्रयोग डेटा के encryption तथाdecryption के लिए किया जाता है। इसे डेटा compression के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
Application Layer – Application Layer OSI Model की लास्ट लेयर है। एप्लीकेशन लेयर का मुख्य
कार्य हमारी वास्तविक एप्लीकेशन तथा अन्य Layers के मध्य interface कराना है। Application Layer end user के सबसे नजदीक होती है। Application Layer
यह control करती है कि कोई भी एप्लीकेशन किस प्रकार
नेटवर्क को access करती
है।
E – Mail क्या है
ईमेल
एक ऐसा सिस्टम है जिसमे एक सिस्टम यूजर किसी दूसरे यूजर को सन्देश और सूचनाओ का
आदान प्रदान कर सकता है| इन सूचनाओ के
आदान प्रदान के लिए कम्युनिकेशन नेटवर्क का उपयोग किया जाता है | ईमेल का प्रयोग करने के लिए विभिन्न
सॉफ्टवेयर यूज में लाये जाते है | ईमेल
करने के लिए यह आवश्यकता नहीं है की ईमेल भेजने वाला और प्राप्त करने वाले के पास
समान कंप्यूटर हो|
Structure
of Email:- इलेक्ट्रॉनिक
ईमेल निम्नलिखित तत्वों या elements को रखता है |
Email Address
Header
Body
Signature
Attachment
1. Email Address
प्रत्येक
यूजर का अलग ईमेल एड्रेस होता है, यही
पता उस यूजर की पहचान होती है, प्रत्येक
ISP ईमेल
की सुविधा प्रदान करता है इसलिए यह प्रत्येक यूजर को ईमेल एड्रेस प्रदान
करती है|
इस
ईमेल एड्रेस में दो हिस्से होते है :-
User Name:- इसमें
यूजर अपने अनुसार नाम दे सकता है |
Host name:- यह
हिस्सा डोमेन नेम होता है, यह
हिस्सा जिस ISP सर्वर से जुड़ा
रहता है,
उससे आता है | दोनों हिस्से @ से विभाजित किये जाते है, एक ही नाम के दो ईमेल एड्रेस नहीं हो
सकते है |
Example:- info@cyberdairy.com
2. Header
यह
ईमेल का ऊपरी हिस्सा होता है, इसमें
निम्न भाग होते है :-
Sender:- इसमें
ईमेल भेजने वाले का एड्रेस आता है |
To:- इसमें
ईमेल प्राप्त करने वाले का एड्रेस रहता है |
CC:- इस
फील्ड का उपयोग ईमेल की कॉपी को किसी दूसरे व्यक्ति को भेजने के लिए किया जाता है|
BCC (Blind Carbon Copy):- इस फील्ड में जिन लोगो के ईमेल एड्रेस
डाले जायेंगे उन्हें उन लोगो के नाम और ईमेल एड्रेस की जानकारी नहीं होगी जिन बाकि
लोगो को यह ईमेल भेजा गया है |
Subject:- इस
फील्ड में ईमेल का सब्जेक्ट होता है |
Message Body :- यहाँ
पर मेसेज को टाइप किया जाता है |
Signature :- इस
फील्ड में ईमेल भेजने वाले की जानकारी होती है |
Attachment :- ईमेल
फाइल के रूप में अतिरिक्त सूचना स्टोर करते है, जिसे
अटैचमेंट कहते है | अटैचमेंट फाइल
में टेक्स्ट,पिक्चर वीडियो
आदि संग्रहित किया जा सकता है |
ईमेल
के लाभ (Advantage of Email):-
Speed (तेज) :- ईमेल प्रणली से भेजे गए सन्देश कुछ ही सेकंड्स
से विश्व के एक हिस्स्से से दूसरे में कुछ ही सेकंड्स में पहुँच जाते है |टेक्स्ट, इमेज
आदि प्रकार के संदेशो को भेजने की सबसे तेज तकनीक है |
Easier (सरल ) :- ईमेल से सन्देश भेजना बहुत आसान है | इसमें सिर्फ भेजने और प्राप्त करने
वाले का ईमेल एड्रेस पता होना चाहिए |
Reliable (विश्वसनीय) :- ईमेल प्रणाली में मेसेज एक सर्वर से दुसरे
सर्वर पर जाता है, इसलिए बहुत कम
Cheap (सस्ता):-
ईमेल से सन्देश भेजना दूसरी प्रणाली से सस्ता पड़ता है |ईमेल प्रणाली में विश्व के किसी कोने
पर सन्देश भेजने में लागत एक समान होती है |
Compatible To Environment (पर्यावरण
के अनुकूल) :- इस प्रणाली में कागज या किसी दूसरे भौतिक माध्यम का उपयोग नहीं होता
है इसलिए यह पर्यावरण के अनुकूल है |
पासवर्ड
क्रेकिंग (Password
Cracking)
कम्प्यूटर
तथा नेटवर्क का पासवर्ड, कोडेड फार्म (Encrypted Cracking) मे स्टोर किया जाता हैं। क्रैकर साफ्टवेयर
प्रोग्राम की मदद से कोडेड पासवर्ड का पता लगा लेते हैं। तथा इसका प्रयोग अवैध
कार्यो(Illegal activities)तथा अनधिकृत उपयोग(Unauthorized use) के लिए करते हैं। Password Cracker एक ऐसा ही सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं।
पैकेट
स्निफिंग (Packet
Sniffing)
इंटरनेट
पर डाटा को पैकेट में बांटकर भेजा जाता हैं। डाटा पैकेट्स को अपने Destination तक पहुंचने से पहले ही उसकी पहचान करके उसे
रिकॉर्ड कर लेना जैकेट स्निफिंग कहलाता हैं।
पैच
(Patch)
सॉफ्टवेयर
कंपनियों द्वारा उपयोग के लिए जारी सॉफ्टवेयर में कई खामियां होती हैं। जिनका
फायदा हैकर /क्रैकर उठाते हैं। सॉफ्टवेयर कंपनियों द्वारा इन कमियों में सुधार के
लिए समय – समय पर छोटे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम जारी किए जाते
हैं, जिन्हें पैच कहा जाता हैं। ये पैच सॉफ्टवेयर
मुख्य सॉफ्टवेयर के साथ ही कार्य करते हैं।
स्केअर
वेयर (Scare Ware)
यह
कम्प्यूटर वायरस का एक प्रकार है जो इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटर को प्रभावित
करता हैं। इसमें इंटरनेट से जुड़े उपयोगकर्ता को कोई फ्री एंटीवायरस या फ्री
साफ्टवेयर डाउनलोड करने का लालच दिया जाता हैं। यह एक अधिकृत सॉफ्टवेयर की तरफ
दिखता हैं, पंरतु इसे डाउनलोड करते ही वायरस कम्प्यूटर
में प्रवेश कर जाता हैं।
फिशिंग
(Phishing)
इंटरनेट
पर इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के यूजर नेम,
पासवर्ड तथा अन्य व्यक्तिगत सूचनाओं
को प्राप्त करने का प्रयास करना फिशिंग (Phishing) कहलाता
हैं। इसेके लिए उपयोगकर्ता को झूठे (Fake)
ई – मेल या संदेश
भेजे जाते हैं जो दिखने में वैध (Legitimate) वेबसाइट से आये हुए लगते हैं। इन ई – मेल
या संदेश में उपायोगकर्ता को अपना यूजरनेम, लॉग
इन आई डी (Login ID) या पासवर्ड तथा अन्य विवरण डालने
को कहा जाता हैं। जिनके आधार पर
उपयोगकर्ता के गुप्त विवरणों की जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं।
डिजिटल
सिग्नेचर (Digital
Signature )
यह
कम्प्यूटर नेटवर्क पर किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने, उसकी
स्वीकृति (Approval) प्राप्त करने तथा किसी तथ्य को सत्यापित
(Verify) करने की एक पद्धति हैं। इसमें नेटवर्क सुरक्षा
का भी ध्यान रखा जाता हैं।
डिजिटल
सिग्नेचर तकनीक का प्रयोग कम्प्यूटर पर स्टोर किए गए किसी डाक्युमेंट का
प्रिंट लिए बिना उस पर हस्ताक्षर करने के लिए किया जाता हैं। डिजिटल सिग्नेचर
किसी मैसेज या डाक्युमेंट के साथ जुड़ जाता हैं। तथा उसकी वैधता (Authenticity) प्रमाणित करता हैं। डिजिटल सिग्नेचर कम्प्यूटर
पर कोडेड फार्म में स्टोर किया जाता हैं ताकि उसे अनधिकृत उपयोगकर्ताओं की पहुंच
से दूर रखा जाए। ई – कामर्स तथा ई प्रशासन (E – governance) में इसका प्रयोग प्रचलित हो रहा हैं।
Spam (स्पैम)
कम्प्यूटर
तथा इंटरनेट का प्रयोग कर अनेक व्यक्तियों को अवांछित तथा अवैध रूप से भेजा गया
संदेश स्पैम कहलाता हैं। इसे नेटवर्क के दुरूपयोग के रूप में जाना जाता हैं। यह ई
– मेल संदेश का अभेदकारी वितरण (Non-distributional distribution)हैं जो ई – मेल
तंत्र में सदस्यता के (Overlapping)
के कारण संभव हो पाता हैं।
Spam सामान्यत: कम्प्यूटर नेटवर्क तथा
डाटा को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। वास्तव में Spam एक
छोटा प्रोग्राम है जिसें हजारों की संख्या में इंटरनेट पर भेजा जाता हैं ताकि वे
इंटरनेट user की साइट पर बार – बार
प्रदर्शित हो सकें। Spam मुख्यत: विज्ञापन होते हैं जिसे
सामान्यत: लोग देखना नहीं चाहते। अत: इसे बार – बार भेजकर
उपयोगकर्ता का ध्यान आकृष्ट किया जाता हैं।
चूकिं
Spam भेजने का खर्च उपयोगकर्ता (Client) या सर्विस प्रोवाइडर पर पड़ता हैं अत: इसे
विज्ञापन के एक सस्ते माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। इंटरनेट की
विशालता के कारण स्पैम भेजने वाले (Spammer)
को पकड़ पाना कठिन होता है। Spam Filter या Anti Spam Software का
प्रयोग कर इससे बचा जा सकता हैं।
URL (यूनिफार्म
रिसोर्स लोकेटर) से आप क्या समझते है ?
November
15, 2017710 Views2 Min Read
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URL (यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर) :-
URL का फुल फॉर्म Uniform Resource Locator होता है जो किसी website या वेबसाइट के पेज को रिप्रेजेंट करता है, या
आपको किसी वेब पेज तक ले जाता है। यूआरएल इन्टरनेट में किसी भी फाइल या वेब साईट
का एड्रेस होता है | URL की शुरुआत Tim Berners Lee ने 1994 में की थी |
URL के तीन हिस्से होते है :-
HTTP:- पहला भाग http यानि
hypertext transfer protocol होता है जिसकी मदद से इटरनेट पर डाटा Transfer
होता है|
Domain
Name:- दूसरा भाग होता है domain name जो कि किसी particular वेबसाइट
का पता (address) होता है|
WWW:- यह एक सर्विस है |
Yaho:- यह संस्था का नाम है |
.com :- यह डोमेन एक्सटेंशन होता है, जो
यह दर्शाता है की वेबसाइट किस प्रकार की है |
सामान्यत:
निम्न 6 प्रकार के डोमेन यूज किये जाते है |
.Com –
Commercial Website (व्यापारिक
संस्थान के लिए) .Edu – Education Website (शैक्षणिक संस्थान के लिए)
.Gov –
Government Website (शासकीय
संस्थान के लिए) .Mil – Millitry Website (मिलिट्री संस्थान के लिए)
.Org –
Organisation Website (संगठन
संस्थान के लिए)
URL कैसे काम करता है ?
इन्टरनेट
पर हर वेबसाइट का एक IP Address होता है जो numerical
होता है जैसे www.google.com का IP एड्रेस 64.233.167.99
हैं तो जैसे ही हम अपने ब्राउज़र
में किसी वेबसाइट का URL टाइप
करते हैं तब हमारा browser उस url को DNS की
मदद से उस डोमेन के IP address में बदल देता है। और उस वेबसाइट तक
पहुच जाता है जो हमने सर्च की थी । शुरुवात में direct IP से
ही किसी वेबसाइट को एक्सेस किया जाता था लेकिन यह एक बहुत कठिन तरीका था । क्योंकि
इतने लम्बे नबर को तो कोई याद रख पाना
बहुत मुश्किल था । इसलिये बाद में DNS
(domain name system) नाम
बनाये गए जिस से हम किसी वेबसाइट का नाम आसानी से याद रखा जा सकता है
Internet के
अनुप्रयोग (Applications)
को समझाइए|
Applications
of Internet
Communication
:- internet के माध्यम से संपर्क करना आसान तेज एवं
सस्ता हो गया है इन्टरनेट में ईमेल,chat
आदि टूल के द्वारा हम एक साथ एक से
अधिक व्यक्तियों से बात कर सकते है |
ईमेल में टेक्स्ट के साथ इमेज,फोटो,मूवी
आदि भी भेज सकते है |
Education:-
internet के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत
बदलाव आये है, व्यक्ति इन्टरनेट के माध्यम से किसी ही
बुक या किसी भी टॉपिक के बारे में इनफार्मेशन को देख सकता है, इसके
आलावा वर्चुअल क्लास के माध्यम से घर बैठे शिक्षा प्राप्त की जा सकती है |
Business:- इन्टरनेट
के माध्यम से व्यापर के क्षेत्र में क्रांति आयी है, इन्टरनेट के
द्वारा किसी भी व्यापर को एक बड़ेस्तर पर किया जा सकता है| जिससे
ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सके |
Entertainment:– इन्टरनेट
के माध्यम से किसी भी मूवी को डाउनलोड किया जा सकता है, ऑनलाइन
shows देखे जा सकते है | और
किसी भी गाने को सुना जा सकता है या प्राप्त किया जा सकता है |जिससे
घर बैठे मनोरंजन किया जा सकता है |
Medicine:- चिक्तिसा
के क्षेत्र में इन्टरनेट का बड़े स्टेट पर यूज किया जाता है, जैसे
किसी मरीज की रिपोर्ट को भेजना | विभिन्न दवाइयों के बारे में
इनफार्मेशन को देखना आदि कार्यो के लिए इन्टरनेट का बड़े स्तर पर यूज किया जाता है |
Shopping:- इन्टरनेट के माध्यम से घर बैठे शॉपिंग की जा
सकती है, चाहे वह कोई भी सामान या प्रोडक्ट हो|
History of Internet
मूलतः
इन्टरनेट का प्रयोग अमेरिका की सेना के लिए किया गया था| शीत
युद्ध के समय अमेरिकन सेना एक अच्छी,
बड़ी, विश्वसनीय संचार
सेवा चाहती थी | 1969 में Arpanet नाम
का एक नेटवर्क बनाया गया जो चार कंप्यूटर को जोड़ कर बनाया गया था, तब
इन्टरनेट की प्रगति सही तरीके से चालू हुई | 1972 तक
इसमें जुड़ने वाले कंप्यूटर की संख्या 37 हो गई थी | 1973 तक
इसका विस्तार इंग्लैंड और नार्वे तक हो गया | 1974 में
Arpanet को सामान्य लोगो के लिए प्रयोग में लाया गया, जिसे
टेलनेट के नाम से जाना गया | 1982
में नेटवर्क के लिए सामान्य नियम बनाये
गए इन्हें प्रोटोकॉल कहा जाता है|
इन प्रोटोकॉल को TCP/IP (Transmission control
protocol/Internet Protocol) के
नाम से जाना गया | 1990 में Arpanet को
समाप्त कर दिया गया तथा नेटवर्क ऑफ नेटवर्क के रुप में इन्टरनेट बना रहा | वर्तमान
में इन्टरनेट के माध्यम से लाखो या करोंड़ों कंप्यूटर एक दूसरे से जुड़े है | (VSNL) विदेश संचार निगम लिमिटेड भारत में इन्टरनेट के
लिए नेटवर्क की सेवाए प्रदान करती है |
www क्या हैं?
वर्ल्ड वाईड वेब मे सूचनाओ को वेबसाईट
के रूप मे रखा जाता है। ये वेबसाइटे वेब सर्वर पर हाईपरटैक्स्ट फाइलो को संग्रहित
होती है। वर्ल्ड वाईड वेब की एक नाम प्रणाली हैै, जिसके द्वारा
प्रत्येक वेबसाइट को एक विशेष नाम दिया जाता है। उसी नाम से उसे वेब पर पहचाना
जाता है। किसी वेबसाइट के नाम को उसका URL (Uniform Resource Locator) भी
कहा जाता है।
जब
हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है,
ब्राउजर प्रोगा्रम के पते वाले बाॅक्स
या एड्रेस बार मे उसका नाम या URl
भरते है। इस नाम की सहायता से ब्राउजर
प्रोग्राम उस सर्वर तक पहुचता है जहाॅ वह फाइल या वेबसाइट स्टोर की गयी है और उससे
एक वेबपेज प्राप्त करने के बाद हमारे कम्प्यूटर पर ला देता है। उस सूचना को
व्राउजर प्रोग्राम माॅनीटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित कर देता है।
उस
वेबसाइट पर कई हाइपरलिंक भी हो सकते है। प्रत्येक हाइपरलिंक किसी अन्य वेबपेज या
वेबसाइट का URL बताता है। उस लिंक को क्लिक करने पर
ब्राउजर उसी वेबपेज या वेबसाइट तक पहुचकर उसे उपयोगकर्ता को उपलब्ध करा देता है।
इस प्रकार उपयोगकर्ता किसी वेबसाइट को देख सकता है, जिसका URL या Name उसे
पता हो।
Web Server
Web Server-
Web Server ब्राउजर को Web Page तथा Website उपलब्ध
कराने में अहम भूमिका निभाता है। यह एक तरह की तकनीक है, जो
हमें, वेब के साथ छोड़ती है। कई बडी कम्पनियों का अपना
स्वयं का Web Server होता है, लेकिन अधिकांश
निजी तथा छोटी कम्पनियाँ वेब सर्वर किराये पर लेती है। यह सुविधा उसे इन्टरनेट
एक्सेस कम्पनी द्वारा प्रदान की जाती है। बिना सर्वर के कोई वेब नहीं हो सकता है।
यहाँ इन्टरनेट पर लाखों वेब सर्वर हैं और प्रत्येक में हजारों Home Page शामिल रहते हैं। Web server software सारे प्रचलित आँपरेटिंग सिस्टम पर उपलब्ध रहता
है। इसमें Unit के विण्डोज एन. टी. सर्वर (NT Workstation) तथा एनं. टी. वर्कस्टेशन (Windows NT Server) शामिल हैं। वेब सर्वर Software, Hardware तथा Operating System के
संयोग पर आधारित है, जो अपने-अपने सर्वर प्लेटफॉर्म के लिए
चुनाव में आसानी से रन करता है।
Windows पर आधारित कुछ वेब सर्वर निम्न हैं-
1.
microsoft internet information server
2. Netscape
fast track server
3. netscape
enterprise server
4. Open
market scure webserver
5. purveyar
intra server
List tag
html मुख्यतः तीन प्रकार की सूचीयो का
समर्थन करता है। जिसमे क्रमबध्द रहित बुलेट सूची, क्रमबध्द नंबर
सूची एवं परिभाषित सूची बना सकते है। विभिन्न Tag की सहायता से html मे
आप आसानी से सूची बना सकते है। दोनो Ordered
और Unordered सूची
बनाने के लिये सूची के आरंभ तथा अंत मे Tag देना जरूरी है।
साथ ही एक स्पेशल Tag जो यह बताता है कि प्रत्येक सूची घटक
कहां से चालू होती है।
1.
Unordered List
2. Order
List
3.
Definetion List
1.
Unordered List- कोई
बिना संख्या वाली सूची ऐसी सूची होती हैै। जिसमे प्रत्येक असंख्यात्मक चिन्ह से
प्रारंभ होता है जिसे बुलेट कहा जाता है। इन्हे Unordered List स्पेज
भी कहते है। html मे ऐसी सूची <ul> Tag से बनाई जाती है।
Syntex :-
<ul>
<li>
coffee </li>
<li>
tea </li>
<li>
milk </li>
</ul>
output-
1. coffee
2. tea
3. milk
Type एट्रीब्यूट
ब्राउजर
प्रोग्राम किसी Unordered List के प्रत्येक आइटम से पहले एक बुलेट
चिन्ह लगाता है।
इस
एट्रीब्यूट के तीन मान हो सकते है-
Disc
Circle
Square
1. Disc-
Disc Tag लगाने से ऊपर की
तरह ठोस वृत दिखाई देता है।
Syntex :-
<ul
type=”disc”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Disc
Circle
Square
2. Circle-
Circle Tag लगाने से खाली
बुलेट के रूप मे दिखाई देते है।
Syntex :-
<ul
type=”circle”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Coffee
Tea
Milk
3. Square-
Square Tag लगाने से ठोस
वर्ग बुलेट के रूप मे दिखाई पडता है।
<ul
type=”square”>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ul>
Output-
Coffee
Tea
Milk
2. Order
List- कोई संख्यात्मक सूची किसी गैर
संख्यात्मक सूची से मिलती है। अंतर केवल यह है कि यह किसी संख्या अथवा इसके
समतुल्य चिन्ह से प्रारंभ होती है। इसे Ordered List कहते
है, HTML मे यह सूची <ol> Tag से बनाई जाती है।
Syntex :-
<ol>
<li>Coffee</li>
<li>Tea</li>
<li>Milk</li>
</ol>
Output-
1. Coffe
2. Tea
3. Milk
3.
Difinition List- Difinition List एक
अन्य प्रकार की List होती है जो Ordered तथा Unordered List से
थोडी अलग होती है। इसे डिफाइनेशन सूची भी कहा जाता है। HTML मे
यह List <dl> Tag से बनाई जाती है।
<dl>
<dt>Coffee</dt>
<dd>Black
hot drink</dd>
<dt>Milk</dt>
<dd>White
cold drink</dd>
</dl>
Output-
Coffee
Black hot
drink
Milk
White cold
drink
Table tag
July 2,
20161,329 Views3 Min Read
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Table Tag-
Html मे सारणी बनाने के लिये Table Tag का उपयोग किया जाता है। किसी Table का
तत्व का सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table>
Table Data
</table>
इससे
स्पष्ट है कि सारणी बनाने का प्रारंभ <Table> Tag से
किया जाता है और समापन </table>
Tag से किया जाता है। इन दोनो के बीच मे Table के Data को
परिभाषित किया जाता है। इस Data मे Table का नाम
प्र्रत्येक पंक्ति के प्रत्येक सैल की परिभाषा आदि शामिल होती है। इनको परिभाषित
करने के लिये विभिन्न Tag का उपयोग किया जाता है।
Table Tag मे कई एट्रीव्यूट हो सकते है, जैसे-
width, border, cellpadding,
cellspacing, bgcolor आदि।
Td Tag- सारणी के किसी सैल को परिभाषित करने के
लिये <td> Tag का उपयोग किया जाता है। इसका पूरा रूप
है- table data इस टैग मे एक सैल की सामाग्र्री उसके
विभिन्न एट्रीव्यूट के साथ दी जाती है। <td> टैग
का उपयोग इच्छानुसार कितनी भी बार किया जा सकता है।
डदाहरण
के लिये यदि हम केवल एक सैल वाली सारणी बनाना चाहते है, तो
उसे निम्न प्रकार बना सकते है-
<table>
<td>
one cell table </td>
</table>
Output-
one cell
table
Border एट्रीव्यूट – ऊपर
के उदाहरण की सारणी मे किसी बाॅर्डर का उपयोग नही किया जा सकता है। यदि हम बार्डर
भी दिखाना चाहते है, तो हमे <table> tag के
साथ border एट्रीव्यूट का उपयोग करना होगा। इसका सामान्य
रूप निम्न प्रकार है-
<table
border= “1”>
<td>
one cell table </td>
</table>
Output-
one cell
table
इस table मे
एक से अधिक cell निम्न प्रकार जोड सकते है.
<table
border= “2”>
<td>
first cell table </td>
<td>
second cell </td>
<td>
third cell </td>
</table>
Width एट्रीव्यूट- ऊपर के उदाहरण की सारणी की
कोई चैडाई नही दी गई है। जब चैडाई नही दी जाती है, तो उसकी चैडाई
एक पंक्ति के सभी सैलो की चैडाई के योग के बराबर होती है। हम चाहे तो सारणी की
चैडाई Width एट्रीव्यूट द्वारा दे सकते है। इसका
सामान्य रूप निम्न प्रकार है-
<table
border= “2” width=”500″ >
<td>
first cell table </td>
<td>
second cell </td>
<td>
third cell </td>
</table>
Output-
first cell
second cell third cell
Tr Tag पंक्तियाॅ जोडना– अभी
तक के सभी उदाहरणो मे केवल एक पंक्ति है। यदि हम सारणी मे एक से अधिक पंक्तियाॅ
देना चाहते है, तो उसके लिये <tr> tag का उपयोग किया जाता है। tr का
पूरा रूप है Table Row.
उदाहरण
के लिये हम दो पंक्तियो वाली एक सारणी हम निम्न प्रकार बना सकते है.
<table
border= “2” width=”500″ >
<tr>
<td>
first cell table </td>
<td>
second cell </td>
<td>
third cell </td>
</tr>
<tr>
<td>
first cell of 2nd row </td>
<td>
second cell of 2nd row </td>
<td>
third cell of 2nd row </td>
</tr>
</table>
HTML Tags
HTML-किसी HTML का पहला व अंतिम
Tag HTML ही
होता है। इस Tag के बीच मे अन्य सभी Tag का
उपयोग किया जाता है।
Syntex :-
<html/>
……………..
</html/>
2.Head Tag
– यह टैग हमारी सभी Web File की सम्पूर्ण जानकारी रखता है। यह HTML टैग
के बीच में लगाया जाता है। यहाँ अन्य टैग को भी रख सकते हैं।
Syntex :-
<html>
<head>
………………..
</head>
</html>
3. Title
Tag- यह Tag Head के बाद लिखा जाता हैं। यह Web Page के Title को बताता है। यह
Title के File पर दिखाई देता
हैं।
Syntex :-
<html>
<head>
<title>
my page
</title>
</head>
</
html>
इससे
हमारे Web Page का Title My page दिखाई देगा। यदि Title नहीं
दिया जाता है तो यह Untitiled या URL बताता है ।
4. Body
Tag- Body Tag, Head Tag के
पूरक के रूप में कार्य करता है। यह Tag
किसी Web Page की
संरचना में आने वाले प्रत्येक भाग को दर्शाता है। यह Head Tag के बाद में आता है Head Tag, Body Tag का एक अन्य भाग बनाता है।
Syntex :-
<html>
<head>
<title>
my first
web page
</title>
<
/head>
<body>
……………..
……………..
</body>
</html>
Tag Case
Sensitive नहीं
होते हैं, अर्थात हन्हें छोटे या बड़े किसी भी
प्रकार के अक्षरों में लिख सकते हैं।
1.
HTTP- यह इंटरनेट पर सूचनाओ को स्थानांतरित
करने का एक प्रोटोकाॅल है। इसका पूरा नाम हाइपरटैक्स्ट ट्रांसफर प्रोट्रोकाॅल है।
इसी प्रोट्रोकाॅल के उपयोग ने बाद मे वर्ल्ड वाइड वेब को जन्म दिया था। इस
प्रोट्रोकाॅल का विकास वर्ल्ड वाइड वेब कोंसोर्टियम तथा इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क
फोर्स ने सम्मिलित रूप से किया था।
यह
एक स्टैण्डर्ड इंटरनेट प्रोटोकॉल है । यह वेब ब्राउजर जैसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट
एक्सप्लोरर और वेब सर्वर जेसे माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट इनफाॅर्मेशन सर्विसेस (IIS) के बीच क्लाइंट/सर्वर इंटरेवशन प्रोसेस
(आदान-प्रदान की
प्रक्रिया
) को स्पेसीफाय (वर्णित) करता है।
वास्तविक
हाहपरटैक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल 1.0
एक स्टेटलेस (अवस्था रहित) प्रोटोकाॅल
है, जिसके द्वारा वेब ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन
(जुड़ता) करता है व उपयुक्त फाइल को डाउनलोड करता है ओर फिर कवेवशन खत्म करता है।
ब्राउजर सामान्यतया एक फाइल के उपयोग के लिए HTTP से रिक्वेस्ट
करता है। GET मेथड TCP पोर्ट 80 पर
रिक्वेस्ट करती है, जिसमे HTTP रिक्वेस्ट हेडर
की सीरीज होती है, जो ट्रांजेक्शन मेथड (GET, POST, HEAD) इत्यादि को परिभाषित करती है और साथ ही सर्वर
को क्लाइंट की क्षमता को बताती है। सर्वर HTTP रिस्पोन्स हेडर
की सीरीज को रिस्पोन्स देता है, जो दर्शाता है कि ट्रांजेक्शन सफल रहा
है कि नहीं, किस प्रकार डेटा भेजा गया है, सर्वर
का प्रकार और जो डेटा भेजा गया था,
इत्यादि IIS 4 प्रोटोकॉल
के उस नए वर्जन को सपोर्ट करता है,
जिसे HTTP 1.1 कहा
गया। नए गुणी के कारण यह ज्यादा सक्षम है।
HTML
Editors & image editors
HTML
Editor- कोई वेब पेज वास्तव मे एक टेक्स्ट फाइल
होती है, जिसमे किसी हाइपरटैक्स्ट भाषा जैसे एचटीएमएल के
व्याकरण के अनुसार कोड दिया होता है। इसी कोड को बाद मे ब्राउजर द्वारा वेब पेज मे
बदलकर दिखाया जाता है। ऐसे प्रोग्राम जिनमे एचटीएमएल कोड को बनाया या सुधारा जाता
है, एचटीएमएल एडीटर (html editor) कहा जाता है। इस कार्य के लिये आप साधारण
टैक्स्ट एडिटरो जैसे नोटपैड (Notepad)
और वर्डपैड (Wordpad) एमएस वर्ड (MS-Word) आदि
का भी उपयोग कर सकते है।
सधारण
टैक्स्ट एडिटरो या वर्ड प्रोसेसरो के अलावा कई विशेष प्रोग्राम भी होते है, जो
केवल वेब पेज तैयार करने और उसके एचटीएमएल कोड को सम्पादित करने के लिये बनाये गये
है जैसे माइक्रोसाॅफ्ट फ्रंटपेज (Microsoft Frontpage), नेटस्केप कम्पोजर (Netscape Composer) आदि। इनमे वेब पेज तैयार करने की विशेष
सुविधाएॅ होती है। अतः आप इनका उपयोग कर सकते है।
Image
Editor- सामान्यतया कोई भी वेबसाइट चित्रो के
बिना पूरी नही होती। सफल वेबसाइट के लिये पाठ्य के साथ ही चित्रो तथा मल्टीमीडिया
सामाग्री को भी पडना पडता है। वेबसाइट मे चित्रो को लगाने के लिये हमेे चित्रो को
अपनी आवश्यकता के अनुसार सुधारने की भी आवश्यकता होती है। कई चित्र हमे स्वयं भी
बनाने पड सकते है, जैसे किसी कंपनी का लोगो आदि।चित्र
संबंधी कार्यो के लिये हमे विशेष प्रोग्रामो की आवश्यकता होती है, जिन्हे
ग्राफिक साॅफ्टवेयर और इमेज एडिटर कहा जाता है। कोरलड्रा, फोटोपेण्ट
और फोटोशाॅप इन कार्यो के लिये सबसे अधिक प्रचलित साॅफ्टवेयर है। इनके अतिरिक्त
बहुत से इमेज एडिटर इंटरनेट पर मुफ्त मे उपलब्ध है, जिनको डाउनलोड
करके उपयोग मे लाया जा सकता है। वास्तव मे चित्र अनेक प्रकार के फाॅर्मेटो मे
उपलब्ध हेाते है। उनको बनाने या सुधारने के लिये विशेष साॅफ्टवेयर की आवश्यकता
होती है। वैसे एडोव फोटोशाॅप मे आप प्रायः सभी प्रकार के चित्रो को खोल सकते है और
सुधार सकते है।
ISP
इन्टरनेट
का कोई भी मालिक नहीं हैं | इसलिए इन्टरनेट का पूरा खर्च किसी को
वहन नही करना पड़ता, बल्कि इन्टरनेट पर किये जाने वाले
कार्य के बदले प्रत्येक User को अपने हिस्से का भुगतान करना पड़ता
हैं | नेटवर्क से सभी छोटे तथा बड़े नेटवर्क जुड़े होते
हैं तथा इनको जोड़ने पर होने वाले खर्च की राशि कहाँ से लाये, यह
निर्णय करते है| School,
University और Company अपने कनेक्शन का भुगतान क्षेत्रीय नेटवर्क को
करती है तथा वह क्षेत्रीय नेटवर्क इस एक्सेस के लिए इन्टरनेट सेवा प्रदाता को
भुगतान करता है|
वह
कंपनी जो इन्टरनेट एक्सेस प्रदान करती है इन्टरनेट सेवा प्रदाता (Internet Service Provider) कहलाती है| किसी
अन्य कंपनी की तरह ही इन्टरनेट सेवा प्रदाता अपनी सेवाओ के लिए User से
पैसा लेती है| internet Service
Provider Company दो
प्रकार का शुल्क लेती हैं|
इन्टरनेट
प्रयोग करने के लिए|
इन्टरनेट
कनेक्शन देने के लिए|
Users को इन्टरनेट कनेक्शन लेने तथा इन्टरनेट
प्रयोग करने का शुल्क ISP को देना पड़ता है| ISP कंपनी
Users से समयावधि, दूरी, गति
तथा डाटा डाउनलोड या अपलोड की मात्रा के अनुसार शुल्क लेती है | BSNL, IDEA, Reliance, Sify, Bharti, VSNL,
Airtel, Vodafone आदि
इन्टरनेट सेवा प्रदाताओ के नाम हैं|
Internet
Connectivity
इंटरनेट
से जुडने के लिये कई तरीके है। इसके लिये आपको अपना कम्प्यूटर किसी सर्वर से जोडना
होता है। इंटरनेट सर्वर कोई ऐसा कम्प्यूटर है, जो दूसरे
कम्प्यूटरो से भेजी गई प्राथनाओ को स्वीकार करता है और उन्हे उनकी जानकारी उपलब्ध
कराता है। ये सर्वर कुछ अधिकृत कंपनियो द्वारा स्थापित किये जाते है, जिन्हे
इंटरनेट सेवा प्रदाता कहा जाता है। ऐसी सेवा देने वाली अनेक कंपनीयां है, आपके
पास किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी का कनेक्शन होना चाहिए। जब आप अपने क्षेत्र
मे कार्य करने वाली किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी से आवेदन करते है और आवश्यक
शुल्क जमा करते है, जिसके द्वारा आप उस कंपनी के सर्वर से
अपने कम्प्यूटर को जोड सकते है।
इंटरनेट
से जुडने की निम्न विधि है.
1. PSTN
(Public Services Telephone Network)- सामान्य टैलीफोन
लाइन द्वारा, जो आपके कम्प्यूटर को डायल अप कनेक्शन
के माध्यम से इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के सर्वर से जोड देती है। कोई डायल अप कनेक्शन
एक अस्थायी कनेक्शन होता है, जो आपके कम्प्यूटर और आईएसपी सर्वर के
बीच बनाया जाता है। डायल अप कनेक्शन मोडेम का उपयोग करके बनाया जाता है, जो
टेलीफोन लाइन का उपयोग आईएसपी सर्वर का नंबर डायल करने मे करता है। ऐसा कनेक्शन
सस्ता होता है, परन्तु बहुत तेज होता है।
2. Leased (लीज लाइन के द्वारा)- लीज लाइन ऐसी सीधी टेलीफोन लाइन होती है, जो
आपके कम्प्यूटर को आईएसपी के सर्वर से जोडती है। यह इंटरनेट से सीधे कनेक्शन के
बराबर है और 24 घंटे उपलब्ध रहती है। यह बहुत तेज
लेकिन महॅगी होती है।
3.V-SAT
(वी-सैट)- V-SAT
Very Small Apertune Terminal का
संक्षिप्त रूप है। इसे Geo-Synchronous
Satellite के रूप मे वर्णन
किया जा सकता है जो Geo-Synchronous
Satellite से जुडा होता है
तथा दूरसंचार एवं सूचना सेवाओ, जैसे.आॅडियो, वीडियो, ध्वनि
द्वारा इत्यादि के लिये प्रयोग किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का Ground Station है जिसमे बहुत बडे एंटीना होते है। जिसके
द्वारा V-SAT के मध्य सूचनाओ का आदान प्रदान होता है, Hub कहलाते
है। इनके द्वारा इन्हे जोडा जाता है।
Domain
name & URL
Domain
name- डोमेन नाम वेबसाइट के उद्येश्य को
पहचानता है। उदाहणार्थ, यहाॅ .com डोमेन नाम बताता
है कि यह एक व्यापारिक साइट है। इसी प्रकार लाभ न कमाने वाले संगठन .org तथा
स्कूल तथा विश्वविद्यालय आदि .edu डोमेन
नामो का उपयोग करते है। नीचे दी गई सूची मे URL मे सामान्यतया
प्रयोग किये जाने वाले डोमेन नाम और उनका अर्थ बताया गया है।
डोमेन
नेम जुडाव उपयोग करने वाले समूह/व्यक्ति
com व्यापारिक लाभ कमाने वाली कंपनियां
edu शैक्षिक शिक्षा संस्थान
Gov सरकारी सरकारी संस्थाये तथा विभाग
Mil सैन्य रक्षा संस्थाये तथा विभाग
Net नेटवर्के इंटरनेट सेवा प्रदाता तथा नेटवर्क
Co कंपनी सूचीबध्द कंपनीयाॅ
Org संगठन लाभ न कमाने वाले या धर्मार्थ संगठन
URL- किसी वेबसाइट का अद्वितीय नाम या पता, जिससे
उसे इंटरनेट पर जाना, पहचाना और उपयोग किया जाता है, उसका
URL कहा जाता है। इसे Uniform Resource Locator भी कहा जाता है। किसी वेब पते का
सामान्य रूप निम्न प्रकार होता है।
Type://address
यहाॅ
type उस सर्वर का type बताता है, जिससे
वह फाइल उपलब्ध है और Address उस साइट का पता बताता है। उदाहरण के
लिये एक वेब पोर्टल के URL
http://www.yahoo.com मे http सर्वर
का type है और www.yahoo.com उसका
पता है। जब हम किसी वेबसाइट को खोलना चाहते है तो इसका URL पते
के बाक्स मे टाइप किया जाता है। यदि कोई सर्वर टाईप नही दिया जाता, तो
उसे http मान लिया जाता है। हम किसी वेब पेज का पाथ उसकी
वेबसाइट के यूआरएल मे जोडकर उस वेब पेज को सीधे भी खोल सकते है।
किसी
वेबसाइट का पूरा URL इन सभी भागो के बीच मे डाॅट (.) लगाकर
जोडने से बनता है। केवल प्रोटोकाॅल के नाम के बाद एक कोलन (:) और दो स्लेश (//)
लगाये जाते है, जैसे-http://www.yahoo.com।
What
is Protocol
प्रोटोकॉल
नियमो का समूह होता है, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जोड़ने एवं
उनके बीच में सूचना के आदान प्रदान के लिए बनाया गया है | प्रोटोकॉल
नेटवर्क से जुड़े डिवाइस के बीच में डाटा का स्थान्तरण नियंत्रित करता है, यदि
समस्या आती है तब error मेसेज दर्शाता है साथ ही स्थान्तरण की
प्रक्रिया के अनुसार डाटा को संभालता है | एक डिवाइस से
डाटा कैसे जाना चाहिए तथा दूसरे डिवाइस को डाटा कैसे प्राप्त करना है, यह
प्रोटोकॉल निश्चित करता है |
“A protocol
is a set of rules to govern the data transfer between the devices”
इंटरनेट
पर सुचारू रूप से कार्य करने के लिये विभिन्न तकनीक की आवश्यकता होती है। इनमे से
वेब प्रोटोकाॅल मुख्य भाग है। इंटरनेट को सुचारू व सफल बनाने मे वेब प्रोटोकाॅल का
महत्वपूर्ण योगदान होता है। इंटरनेट पर विभिन्न प्रोटोकाॅल का प्रयोग होता है अतः
इन्हे वेब प्रोटोकाॅल कहा जाता है।
Types of
Protocols-
1.
Transmission control Protocol (TCP)
2. Internet
Protocol (IP)
3. Internet
Address Protocol (IP Address)
4. Post
office Protocol (POP)
5. Simple
mail transport Protocol (SMTP)
6. File
Transfer Protocol (FTP)
7. Hyper
Text Transfer Protocol (HTTP)
8. Ethernet
9. Telnet
10. Gopher
Internet
& Intranet
Internet
& Intranet-ये
समान दिखने वाले दोनो ही शब्द कम्प्यूटर नेटवर्काे को व्यक्त करते है। दोनो की
कार्यप्रणाली भी लगभग समान होती है,
परन्तु दोनो मे कई मौलिक अंतर भी होते
है। जो निम्न है-
इंटरनेट
(Internet)-
1. इंटरनेट नेटवर्काे का नेटवर्क है। इसमे
विभिन्न प्रकार के नेटवर्काे (LAN,
MAN, WAN) को मिलाकर एक
नेटवर्क तैयार किया जाता है।
2. इंटरनेट
का लाभ कोई भी व्यक्ति उठा सकता है।
3. इंटरनेट
का कोई मालिक नही होता है।
4. इसका
Use बडे पैमाने पर किया जाता है।
इंट्रानेट
(Intranet)
1. इंट्रानेट
मुख्य रूप से लोकल एरिया नेटवर्क (LAN)
से मिलकर बना होता है।
2. इंट्रानेट
का लाभ केवल उसका स्वामी संगठन या कंपनी के कर्मचारी ही उठा सकते है।
3. इंट्रानेट
का कोई न कोई मालिक भी होता है।
4. इसका
Use छोटे पैमाने पर किया जाता है।
Web
Browser –
World wide
web ब्राउज़र को सामान्यतः वेब ब्राउसर कहा
जाता है | वेब ब्राउसर सॉफ्टवेयर होते है जिनकी सहायता से
इन्टरनेट की इन्फोर्मेशन को एक्सेस किया जाता है | ये client program होते है तथा हायपर टेक्स्ट दस्तावेजो के साथ
संवाद करने और उन्हें प्रदर्शित करने में सक्षम होते है | वेब
ब्राउजर का यूज कर इन्टरनेट पर उपलब्ध विभिन्न सेवाओ का यूज कर सकते है |
वेब
ब्राउजर दो प्रकार के होते है :-
1. टेक्स्ट आधारित ब्राउजर:- ये ब्राउजर
केवल टेक्स्ट को सपोर्ट करते है |
2. ग्राफिकल ब्राउज़र:- ये ब्राउजर
मल्टीमीडिया जैसे टेक्स्ट, वीडियो, एनीमेशन, ऑडियो
आदि को सपोर्ट करते है
वेब
ब्राउजर के माध्यम से वेबसाइट को कनेक्ट करने के लिये निम्नलिखित Steps को follow करते
है-
Step 1 : वेब ब्राउजर मे वेब साइट के URL को Type करते है जैसे- www.CyberDairy.com!
Step 2 : ब्राउजर वेब सर्वर से कनेक्शन बनाता
है।
Step 3
: वेब
सर्वर Resquest को रिसीव करता है।
Step 4 : वेब ब्राउजर आपकी स्क्रीन पर वेब पेज
को प्रदर्शित करता है तथा ब्राउजर और सर्वर के बीच कनेक्शन क्लोज हो जाता है।
हालांकि विभिन्न प्रकार के वेब ब्राउजर बाजार मे उपलब्ध है लेकिन मुख्य रूप से
प्रयोग होने वाले वेब ब्राउजर निम्न है-
1.
Microsoft Internet Explorers
2. Netscape
navigator
3. Google
Chrome
4. Mozilla
Firefox
5. Opera
Mini
6. Safari
7.
Microsoft edge
8. Maxthon